Last modified on 12 फ़रवरी 2016, at 11:42

फ़ना का होश आना ज़िंदगी का दर्द-ए-सर जाना / बृज नारायण चकबस्त

फ़ना का होश आना ज़िंदगी का दर्द-ए-सर जाना
अजल क्या है खुमार-ए-बादा-ए-हस्ती उतर जाना

मुसीबत में बशर के जौहर-ए-मरदाना खुलते हैं
मुबारक बुजदिलों को गर्दिश-ए-किस्मत से डर जाना

बहुत सौदा रहा वाएज़ तुझे नार-ए-जहन्नुम का
मज़ा सोज़-ए-मोहब्बत का भी कुछ ए बेखबर जाना