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फ़िर से इश्क़ के ज़माने लौट आएंगे / शिव रावल

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तेरे मेरे इश्क़ के फिर से ज़माने लौट आएंगे
हदु की माफ़ीक़ राह रोके खड़े सब वीराने लौट जाएंगे
ख़ुशरंग मौसम, हसीन किस्से-कहानियाँ, अफ़साने लौट आएंगे
अरसे से राह देखती उम्र के दिन पुराने लौट आएंगे
तुम देखना, फिर हसरतों के बाग़ सब हो जाएंगे हरे
मेरी नींदों को ठुकरा कर गए तुम्हारे हसीन ख़्वाब
किसी न किसी बहाने लौट आएंगे
फ़िर से खुशियाँ मुरीद होंगी मेरी महफिलों की
जब तेरे जलवे मेरा दिल बहलाने लौट आएंगे
ग़ुलाबों की तरह दिन खिलेंगे
सुरमई रात के सब सितारे मेरे सिरहाने लौट आएंगे
 इस उम्मीद में दरवाज़ा खुला रखना 'शिव' के
 मोहब्बत के बचपन के दिन थे शायद होके शयाने लौट आएंगे