फ़िर से बना लिया खु़द को कोरा काग़ज़ मैंने
ले अब अपने जज़्बात के नए रंग भर दे मुझमें|
जो गुज़र गया है, कुहासा था घना कोहरा था
छू के मेरी जात को कोई बिजली-सी भर दे मुझमें।
जाने क्यूँ प्यासी है सदियों से इस जिस्म की धरती
कोई काली घटा बनके समंदर-सा भर दे मुझमें।
"शम्स" जब से इज़हारे मुहब्बत किया है उसने
जमा हुआ लहू सरगोशियाँ-सी करे है मुझमें।
रचनाकाल: 09.08.2002