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फ़ैसला / राकेश रेणु

एक बार कुत्तों की सभा लगी
और एक स्वर में
औपचारिक भौंक भरे स्वागत के बाद
प्रधान कुत्ते के इशारे पर प्रस्ताव रखा गया
कि तमाम मरियल — नामालूम से कमज़ोर कुत्तों को
देश से बाहर खदेड़ दिया जाए

वे हमारी जात के हो नहीं सकते
इतने मरियल-सड़ियल से
राष्ट्रीय विकास के महान लक्ष्य में
हो नहीं सकता इनका कोई योगदान

वैसे भी ये बाहर से आए घुसपैठिए हैं
हमारे हिस्से का खाएँगे और हमारी ऊँची कौम ख़राब करेंगे
हमारे संसाधनों पर बोझ हैं वे
घुस आए हैं हमारी बस्ती में पड़ोसी बस्तियों से

उन बस्तियों से जो हैं तो छोटे, कीट-फतिंगों से
कि जिनके बारे में कहा जाता है
विकास के पैमानों पर आगे हैं हम से
लेकिन हम उनकी परवाह क्यों करें ?

क्या हम मनुष्य हैं कि मानवता की बात करें ?
मानवीय सूचकाँकों से डरें ?

वैसे भी भूख के सूचकाँक में या स्वास्थ्य के सूचकाँक में या फिर
शिक्षा के सूचकाँक में या आमदनी और रोज़गार के सूचकाँक में
जो हमें पीछे दिखाया जा रहा है साल-दर-साल
 — कहा वज़ीरे दाख़िला कुत्ते ने —
यह एक साज़िश का हिस्सा है विरोधियों का
प्रमुख विपक्षी दल ने जो है तो पर नहीं होने जैसा है
उसकी साँठगाँठ है विदेशी कुत्ता शत्रुओं से
उसके नतीजतन हमें पिछड़ता दिखाया जा रहा है

ध्यान रहे हम विकास की दौड़ में हैं, बहुत आगे हैं
अब तो कह दिया है अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने, मित्र राष्ट्रों और मित्र कारपोरेटों ने भी
कि जल्दी ही सबसे आगे निकलने वाले हैं हम दुनियाभर में सबसे आगे
फिर हम क्यों डरें, क्यों परवा करें ?

लिहाजा प्रस्ताव किया जाता है
प्रस्ताव क्या, फ़ैसला किया जाता है
कि सभी मरियल, नामालूम से, कमज़ोर कुत्तों को
घुसपैठिया घोषित किया जाए

बन्द कर दी जाए उन्हें मिलने वाली तमाम सुविधाएँ तत्काल प्रभाव से
और जल्दी से जल्दी उन्हें देश से बाहर किया जाए ।

सभासद सभी कुत्तों ने
प्रस्ताव का समर्थन किया एक सुर से
तनिक गुर्राहट, तनिक भौंक के अनोखे, रोमाँचक मेल के साथ
मानो कह रहे हों — साधु ! साधु !

ये जो हम देखते हैं
सड़कों, गलियों, मोहल्लों में
मरियल, कमज़ोर, अजनबी (?) कुत्ते को घेर
भौंकते, काटते, डाँटते और गाहे-बेगाहे जान से मारते कुत्तों के समूह

ये उसी बड़े फैसले पर अमल की तैयारी है
कुत्तों के कार्यकर्त्ता और राष्ट्र सेवक
चौकस हैं दिन-रात
अब कोई बाहरी रह नहीं पाएगा
कुत्ता राज में ।