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फागुनी रंगों भरी बयार / उमाकांत मालवीय

फागुनी रंगों भरी बयार
आ पहुँची आपके द्वार

ऋतुराज वसंत का आगमन
झंकृत हो उठा मन उपवन।
कण-कण में रंगों की तरुणाई झाँकी
इतराई पुष्पों की छवि बाँकी।
धरती सौंदर्य से इठलाकर
सूर्य किरण आँखों में रचकर
उड़े कभी इस पार, कभी उस पार
फागुनी रंगों भरी बयार।

आलिंगन करता बार-बार
मोहित हो भ्रमर राज
गुन-गुन करता गुंजार
देखकर कलियों का शृंगार।
यही है प्रेम प्रदर्शन
उसके हाथ में चक्र-सुदर्शन
जीवन को पुकार
सुख व स्नेह का आँचल पसार खड़ी हुई
फागुनी बयार आई आपके द्वार।