Last modified on 12 अगस्त 2013, at 09:53

फागुन का रथ / देवेन्द्र कुमार

फागुन का रथ कोई रोके ।

ठूठी शाखें पतियाने लगीं,
घेर-घेर कर बतियाने लगीं,
ऐसे में कौन इन्हें टोके,
फागुन का रथ कोई रोके ।

खेतों की हरियाली बँट गई
फसलें सोना होकर कट गईं,
घर ले जाऊँ किस पर ढो के
फागुन का रथ कोई रोके ।

आओ नदिया तीरे बैठें,
सुस्ता लें फिर अन्दर पैठें,
आते हैं लहरों के झोंके,
फागुन का रथ कोई रोके ।