भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फिक्र / विभा रानी श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

देख गुलमोहर-अमलतास
ठिठक जाती हूँ!
ठमका देता है
सरी में दिखता जल।

अनेकानेक स्थलों पर
विलुप्तता संशय में डाले हुए है!
बचपन सा छुप गया,
तलाश में हो लुकाछिपी।

है भी तो नहीं
अँचरा के खूँट
कैसे गाँठ बाँध

ढूँढ़ने की कोशिश होगी
जब कभी उन स्थलों पर
पुनः वापसी होगी।