Last modified on 21 जनवरी 2019, at 20:48

फिर आया घर-घर में / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

फिर आया
घर घर में
उत्सव का मौसम

जुम्मन की जेबों से त्योहारी बोली
मिलती हो गुइयाँ बस दीवाली होली
सुनता है
सारा घर
सिक्कों की खनखन
बरसा है
आँगन में
कपड़ों का सावन

सहरा पे
लहराया
रंगों का परचम

हलवाई ने प्रतिमा शक्कर से गढ़ दी
भूखी गैलरियों में जमकर है बिकती
बसुला, छेनी
सारा दिन करते खट-खट
चावल के दाने भी
करते हैं पट-पट

आँवें के मुख पर है
लाली का आलम

मैली ना हो जाएँ
बैठीं थीं छुपकर
बक्सों से खुशियाँ सब फिर आईं बाहर
हर घर में रौनक है
गलियों में हलचल
फूलों से लगते
जो पत्थर से थे कल

अद्भुत है
कमियों का
ख़ुशियों से संगम