भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"फिर इस दिल के मचलने की कहानी याद आती है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो ()
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
{{KKGlobal}}
+
<poem>
{{KKRachna
+
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
+
}}फिर इस दिल के मचलने की कहानी याद आती है
+
  
 +
फिर इस दिल के मचलने की कहानी याद आती है
 
मुझे फिर आज अपनी नौजवानी याद आती है
 
मुझे फिर आज अपनी नौजवानी याद आती है
 
  
 
बहुत कुछ कहके भी उनसे न कह पाया था प्यार अपना
 
बहुत कुछ कहके भी उनसे न कह पाया था प्यार अपना
 
 
तपिश सीने की बस आँखों में लानी याद आती है
 
तपिश सीने की बस आँखों में लानी याद आती है
 
  
 
'कहा क्या! कल कहूंगा क्या! न यह कहता तो क्या कहता!'
 
'कहा क्या! कल कहूंगा क्या! न यह कहता तो क्या कहता!'
 
 
यही सब सोचते रातें बितानी याद आती है  
 
यही सब सोचते रातें बितानी याद आती है  
 
  
 
शरारत की हँसी आँखों में दाबे, नासमझ बनती  
 
शरारत की हँसी आँखों में दाबे, नासमझ बनती  
 
 
मेरी चुप्पी पे उनकी छेड़खानी याद आती है
 
मेरी चुप्पी पे उनकी छेड़खानी याद आती है
 
  
 
भुला पाता नहीं मैं पोंछना काजल पलक पर से
 
भुला पाता नहीं मैं पोंछना काजल पलक पर से
 
 
लटें आवारा उस रुख से हटानी, याद आती है
 
लटें आवारा उस रुख से हटानी, याद आती है
 
  
 
कभी गाने को कहते ही, लजा कर सर झुका लेना  
 
कभी गाने को कहते ही, लजा कर सर झुका लेना  
 
 
गुलाब! अब भी किसीकी आनाकानी याद आती है
 
गुलाब! अब भी किसीकी आनाकानी याद आती है
 +
<poem>

21:47, 29 जून 2011 का अवतरण

 

फिर इस दिल के मचलने की कहानी याद आती है
मुझे फिर आज अपनी नौजवानी याद आती है

बहुत कुछ कहके भी उनसे न कह पाया था प्यार अपना
तपिश सीने की बस आँखों में लानी याद आती है

'कहा क्या! कल कहूंगा क्या! न यह कहता तो क्या कहता!'
यही सब सोचते रातें बितानी याद आती है

शरारत की हँसी आँखों में दाबे, नासमझ बनती
मेरी चुप्पी पे उनकी छेड़खानी याद आती है

भुला पाता नहीं मैं पोंछना काजल पलक पर से
लटें आवारा उस रुख से हटानी, याद आती है

कभी गाने को कहते ही, लजा कर सर झुका लेना
गुलाब! अब भी किसीकी आनाकानी याद आती है