Last modified on 20 अक्टूबर 2019, at 00:02

फिर पुकारा है तुम्हें / उर्मिल सत्यभूषण

तुमने-
तुमने तो उन आतताइयों
के विरुद्ध कसमें खाईं थीं
जिन्होंने बार-बार तुम्हारी
माँको घायल किया था
लाल चनाब के पानी को
अंजुरि में भरकर त्राहि-
त्राहि करती माँ के जख़्मों
को धोने का प्रण किया
था तुमने।
दिन-रात मेहनत मजूरी
करके तुमने मेरे छीजते
जिस्म को सेहत की लाली
बख्शनी चाही थी।
अलग-अलग रूपों व
नामों वाले मेरे बेटो!
तुमने तो एक-रूप, एक-जुट
और एकात्म होकर खंडहरों
को संवारने का संकल्प किया था।
तुमने मेरी मिट्टी को
शीश धर कर सोना उगाने के
वायदे किये थे। हरित क्रान्ति
के सपने देखे थे।
ओ मेरे श्रम शील बच्चो!
तुमने जो सोचा पूरा किया
तुमने अपने सपनों को
सत्य में बदल दिया।
मेरे खेत लहलहा उठे
हरित क्रान्ति ने वीरान
उजड़ें अरमानों को सरसब्ज
कर दिया।
किस्म-किस्म के उद्योगों
में लगे जी तोड़ श्रम ने
मेरे लुटे खजाने भर दिये
मेरी मनचली नदियों का
पानी संयमित होकर
मेरी बंजर ज़मीन को
सराबोर करने लगा
तीर्थ स्थलों के रूप में
बड़े-बड़े डैम उग आये
बिजली घरों ने घर-घर
गांव-गांव, शहर-शहर
रोशनी की कंदीलें टांग दीं
प्यासे खेतों की खातिर
नहरों का जाल बिछ गया
मेरी ज़िंदगी में बहार आ गई
समय की मरहम मेरे
जख़्मों को भरने लगी
मेरा नाम उजागर हो उठा।
तुमने, कई-कई कीर्तिमान
स्थापित कर मेरे यश
के झंडे गाड़ दिये।
मैं झूम उठी भंगड़े की
टोलियों में
गिद्दे की बोलियों में।
खिलखिला उठी खेतों
की बालियों में
बागों की डालियों में
नदियों के दर्पण में
निहार रही थी अपनी छवि
आत्मा मुग्धा-कि
सनसनाता एक तीर मेरी
रीढ़ को चीर कर निकल गया
खून का फौवारा छूटा
और पानी में घुल गया।
मेरी नज़र धुंधली हो गई
मैं उठी, दो गोलियां
मेरी पसलियों को भेद
कर निकल गईं।।
मैं तुम्हें पुकारने लगी
पर तुम बहरे होकर,
अंधे होकर, आपस में
गुंथे पड़े थे। मैं कांप
उठी। अतीत मेरी आँखों
में नाच उठा।
मेरे जख़्म हरे हो गये
मेरे बेटे फिर किसके
इशारों पर नाचने लगे?
अपनी एकात्मकता
भूल कर, खंड-खंड
होकर मुझे खंडित
करने लगे।
मेरे रिसते जख़्मों
से नजर बचाकर
वहशियाना हरकतों पर
उतर आये तुम-
भूल गये, भूल गये
यह कि तुम्हारी माँ
फिर किसी आतताई
के हाथ पड़ सकती है।
ओ एक दूसरे के खून के
प्यासे बेटो! होश में आओ।
अपने स्वार्थ के लिए द्वेष का बीज वमन
करने वाले हाथों को
खोज लो और काट दो
उन्हें जिन्होंने रिश्तों
में ज़हर बोया है।
छिन्न-भिन्न कर डालो वह मस्तक
जिसने सबको रौंद कर
तानाशाही हकूमत का
सपना देखा है।
नेस्तनाबूद कर दो
वो साम्राज्यवादी इरादे
जो मेरी अखंडता और
सार्वभौमिकता को
कुचल कर मुझे फिर
गुलामी की जंजीरों
में जकड़ने को-
बेकरार हो उठे हैं।
सुनते हो मेरे बच्चों!
माँ ने फिर पुकारा है
तुम्हें-!