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"फिर बही तुम्हारे आँचल से, मादक मन भावन गंध प्रिये / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'" के अवतरणों में अंतर

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मधुबन की रानी थिरक उठी, नव गीत मिलन के गा-गाकर
 
मधुबन की रानी थिरक उठी, नव गीत मिलन के गा-गाकर
नभ में करताल मृदंग लिए, झुमा रति संग अनंग प्रिये।
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नभ में करताल मृदंग लिए, झूमा रति संग अनंग प्रिये।
  
 
तन कोंपल लालो-लाल हुई, हर सांस हुई चंदन चंदन
 
तन कोंपल लालो-लाल हुई, हर सांस हुई चंदन चंदन

12:31, 12 जून 2019 के समय का अवतरण

फिर बही तुम्हारे आँचल से, मादक मन भावन गंध प्रिये
फिर लगा बरसने अम्बर से झर झर, झर झर मकरन्द प्रिये।

कलियों ने घूंघट खोल दिया, है कुहू कुहू कोयल बोली
तितली ने सुमन कपोलों पर इतरा कर लिखा निबंध प्रिये।

मधुबन की रानी थिरक उठी, नव गीत मिलन के गा-गाकर
नभ में करताल मृदंग लिए, झूमा रति संग अनंग प्रिये।

तन कोंपल लालो-लाल हुई, हर सांस हुई चंदन चंदन
फिर फिर संयम प्राचीर ढही, फिर फिर टूटी सौगंध प्रिये।

फिर मधुर मिलन की चाह जगी, मन भ्रमर हुआ पल में बेसुध
भहराये कूल कगार सभी, टकरा टकरा तटबंध प्रिये।

वय, बीस-पचीस की कौन कहे, बम-भोला पचहत्तर बोली
फिर हुईं तिरोहित सीमाएं, असमंजस अंतरद्वन्द प्रिये।

पथ जिधर चला सब उधर चले, जो ठान लिया वो कर गुज़रे
लो हार गया संसार लगा, हम पर सौ-सौ प्रतिबंध प्रिये।

गुण काल अव्यवस्थित हुए फिर स्वर्ग-नर्क का भेद मिटा
फिर ज्ञान योग वैराग्य सभी हारे पग पग पर जंग प्रिये।

जादुई हवा के घोड़े पर होकर सवार बौराया सा
लो चला ढूंढने शकुन्तला,उपवन उपवन दुष्यंत प्रिये।

फिर सतरंगी चूनर पहने, दुल्हन सी सजी प्रकृति जैसे
सौन्दर्य पयोनिधि में विकसे इंदीवर नवल अनंत प्रिये।

टिकता जीवन पर्यन्त सत्य 'विश्वास' प्रेम का नाता जो
वह प्रेम लुटाने वसुधा पर, उतरा ऋतुराज बसन्त प्रिये।