भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फिर भी किसी को याद आउं तो / कुमार सौरभ

Kavita Kosh से
Kumar saurabh (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:02, 5 जनवरी 2018 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

न रहूँ किसी के धन्यवाद ज्ञापन में
किसी के आत्मकथ्य
में भी मेरी पैठ न हो
किसी के सुखी दिनों में तो विस्मृत ही रहूँ
शरीक रहूँ किसी के दुखी दिनों में
तब भी उबरते दिनों पर
कृतज्ञता का बोझ बन टंगा न रहूँ

किसी को याद आ जाउं फिर भी
तो इस तरह तो आउं
कि किसी के दुखते हुए सिर पर कभी हाथ रखा था
कि किसी के साथ घंटों तब बिताए थे
कि जब उसे इसकी जरूरत थी
कि किसी की शर्ट से टूट कर गिरा बटन
उठाकर उसे सौंपा था
कि किसी जलती दोपहरी में
बोतल के खत्म हो रहे पानी से
किसी की प्यास बाँटी थी
कि किसी के लिए रोशनी की परवाह तब की थी
जब मैं खुद अंधेरा हुआ करता था !