Last modified on 22 मार्च 2012, at 12:22

फिर लहर तट छू गयी इस बार / राजेश शर्मा


फिर लहर तट छू गयी इसबार,नदिया क्या करे.
सामने थी प्यास की मनुहार, नदिया क्या करे.
 
हिम-शिखर के बाद छूटी हिम-नदी जैसी सहेली.
देवदारों में उछलती, कूदती फिरती अकेली.
एक हिरनी ले गयी आकार नदिया क्या करे.
 
उलझनों ने भी सिखाया,खीझकर राहें बदलना.
था कठिन कलुषित वनों के बीच से बचकर निकलना.
पाहनों ने रोक ली थी धार, नदिया क्या करे.
 
याद है वो पेड़,जिसने बाढ़ में,तन-मन छुआ .
तब लगा ऐसा दहकती आग ने मधुवन छुआ .
स्वप्न तो होते नहीं साकार, नदिया क्या करे.
 
बांध ने बंदी बनाया, कस लिया तटबंध ने .
सीस से तल में उतारा सिन्धु की सौगंध ने.
रस-प्रिया को रेत का आधार,नदिया क्या करे.