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फिर वही चाँद वही रात कहाँ से लाऊँ / फ़रहत एहसास

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फिर वही चाँद वही रात कहाँ से लाऊँ
उससे दोबारा मुलाक़ात कहाँ से लाऊँ !

फाका करने से फकीरी तो नहीं मिल जाती
तंगदस्ती में करामात कहाँ से लाऊँ !

हर घड़ी जागता रहता है दुखों का सूरज
नींद आती है मगर रात कहाँ से लाऊँ !