फिर समय के कृष्ण ने गीता सुनाई है
अर्जुनों को ज्ञानगंगा छूने आई है
आसमाँ पर चांद-तारे, धरती पर नर नार
नाचते हैं, रास रसिया ने रचाई है
पनघटों पर गोपियाँ है मंत्र मुग्धा सी
मुरलीधर ने आज फिर मुरली बजाई है
ज्योति रेखा खींच दी धरती गगन के बीच
एक ज्योति दूसरी से मिलने आई है
संास का स्वर लग रहा ज्यो नाद अनहद का
चेतना ने आँख खोली, मुस्कुराई है।