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"फिर सुन रहा हूँ गुज़रे ज़माने की चाप को / शकेब जलाली" के अवतरणों में अंतर

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फिर सुन रहा हूँ गुज़रे ज़माने की चाप को
 
फिर सुन रहा हूँ गुज़रे ज़माने की चाप को
भूला हुआ था देर से में अपने आप  
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भूला हुआ था देर से मैं अपने आप को
  
रहते हैं कुछ मलूल से चेहरे पड़ोस में
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रहते हैं कुछ मलूल<ref>उदास
इतना न तेज़ कीजिए ढोलककी थाप को
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</ref> से चेहरे पड़ोस में
[मलूल=sad, despondent]
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इतना न तेज़ कीजिए ढोलक की थाप को
  
अश्कों की एक नहर थी जो खुश्क हो गयी
+
अश्कों की एक नहर थी जो ख़ुश्क हो गई
क्यूँ कर मिटाऊँ दिल से तेरे गम की छाप को
+
क्यूँ कर मिटाऊँ दिल से तेरे ग़म की छाप को
  
 
कितना ही बे-किनार समंदर हो, फिर भी दोस्त
 
कितना ही बे-किनार समंदर हो, फिर भी दोस्त
रहता है बे-करार नदी के मिलाप को
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रहता है बे-क़रार नदी के मिलाप को
  
 
पहले तो मेरी याद से आई हया उन्हें
 
पहले तो मेरी याद से आई हया उन्हें
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तारीफ़ क्या हो कामत-ए-दिलदार की शकेब
 
तारीफ़ क्या हो कामत-ए-दिलदार की शकेब
 
ताज्सीम कर दिया है किसी ने अलाप को
 
ताज्सीम कर दिया है किसी ने अलाप को
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13:19, 19 नवम्बर 2012 के समय का अवतरण

फिर सुन रहा हूँ गुज़रे ज़माने की चाप को
भूला हुआ था देर से मैं अपने आप को

रहते हैं कुछ मलूल<ref>उदास
</ref> से चेहरे पड़ोस में
इतना न तेज़ कीजिए ढोलक की थाप को

अश्कों की एक नहर थी जो ख़ुश्क हो गई
क्यूँ कर मिटाऊँ दिल से तेरे ग़म की छाप को

कितना ही बे-किनार समंदर हो, फिर भी दोस्त
रहता है बे-क़रार नदी के मिलाप को

पहले तो मेरी याद से आई हया उन्हें
फिर आईने में चूम लिया अपने आपको

तारीफ़ क्या हो कामत-ए-दिलदार की शकेब
ताज्सीम कर दिया है किसी ने अलाप को

शब्दार्थ
<references/>