भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फिर से हम इतिहास लिखें / अनिल कुमार मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भारत माँ का देशवासियों !
फिर से हम इतिहास लिखे।
अपना गौरव याद करें औ’,
संस्कृति की हर साँस लिखें।।

मुग़लों ने, अंग्रेजों ने जो,
छिन्न-भिन्न कर डाला है।
और उन्ही के भक्तों ने,
जो फेरी उनकी माला है।।

काटें उनके शब्द-जाल को
आओ अब कुछ ख़ास लिखे।
भारत माँ का देशवासियों !
फिर से हम इतिहास लिखें।।

विश्व वन्दिता भारत माता,
विश्व गुरू इसके सपूत थे।
किनने इसका शीश झुकाया,
कौन–कौन कायर-कपूत थे?

छद्म नायकों के पन्नों पर ,
उनका कुछ उपहास लिखे।
भारत माँ का देशवासियों !
फिर से हम इतिहास लिखें।।

उस नरेंद्र को याद करें हम,
जो विवेक बन जाता है।
हिन्दू धर्म और दर्शन को,
दुनिया को समझाता है।

राम-कृष्ण को समझे फिर से,
शंकर का संन्यास लिखे।
भारत माँ का देशवासियों !
फिर से हम इतिहास लिखें।।

अष्ट-अंग का योग दिया है,
पूण्यभूमि यह षट-दर्शन की।
सभी सुखी हों, सभी निरोगी,
जड़-चेतन में हरि चिंतन की।

उपनिषदों के अन्दर झांकें
वेदों का फिर भास् लिखे।
भारत माँ का देशवासियों !
फिर से हम इतिहास लिखें।।

ब्रह्मदंड की महिमा न्यारी,
कामधेनु साकार जहाँ पर।
चक्रसुदर्शन, ब्रह्म-अस्त्र के,
जैसे थे हथियार जहाँ पर।

गौरी-शंकर को पहचानें,
फिर श्रद्धा-विश्वास लिखें।
भारत माँ का देशवासियों!
फिर से हम इतिहास लिखें।।

चरण पड़ो चाणक्य खड़े हैं,
अर्थशास्त्र समझाने वाले।
नल अरु नील तिरा पत्थर को,
सागर सेतु बनाने वाले।
  
आर्यभट्ट का अब तो आओ,
अर्थ शून्य के पास लिखें।
भारत माँ का देशवासियों !
फिर से हम इतिहास लिखें।।

भारत माँ आज़ाद हुई है,
बलिदानों से जिनके जानें।
अब भी सरहद पर रातों-दिन,
खड़े हैं जो भी सीना ताने।

नमन करें गिन-गिन के उनको,
कुछ उन पर सायास लिखें।
भारत माँ का देशवासियों !
फिर से हम इतिहास लिखें।।