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"फिसल रही चांदनी / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर

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|संग्रह=खिचड़ी विप्लव देखा हमने / नागार्जुन
 
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पीपल के पत्तों पर फिसल रही चांदनी
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नालियों के भीगे हुए पेट पर, पास ही
 
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चमक रही, दमक रही, मचल रही चाँदनी
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दूर उधर, बुर्जों पर उछल रही चाँदनी
  
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अब मगर किस कदर संभल रही चाँदनी
दूर उधर, बुर्जों पर उछल रही चांदनी
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पिछवाड़े बोतल के टुकड़ों पर
 
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नाच रही, कूद रही, उछल रही चाँदनी
नाच रही, कूद रही, उछल रही चांदनी
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पीपल के पत्तों पर फिसल रही चांदनी
 
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(१९७६)  
(१९७६ में रचित,'खिचड़ी विप्लव देखा हमने' नामक कविता-संग्रह से)
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11:56, 18 नवम्बर 2010 का अवतरण

पीपल के पत्तों पर फिसल रही चाँदनी
नालियों के भीगे हुए पेट पर, पास ही
जम रही, घुल रही, पिघल रही चाँदनी
पिछवाड़े बोतल के टुकड़ों पर--
चमक रही, दमक रही, मचल रही चाँदनी
दूर उधर, बुर्जों पर उछल रही चाँदनी

आँगन में, दूबों पर गिर पड़ी--
अब मगर किस कदर संभल रही चाँदनी
पिछवाड़े बोतल के टुकड़ों पर
नाच रही, कूद रही, उछल रही चाँदनी
वो देखो, सामने
पीपल के पत्तों पर फिसल रही चांदनी

(१९७६)