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फीकी पुष्पमाला / वाल्ट ह्विटमैन / दिनेश्वर प्रसाद

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मैं इसे किसी कारण अभी यों  ही नहीं जाने दूँगा, भले ही
यह शोक की है
इसे फिर अपनी खूँटी पर ही टँगी  रहने दो,
गुलाबी, नीला, पीला, सब रँग उड़े, सब फीके रँगों वाली
और उजला रँग अब मलिन और धूसर,
बरसों पहले तुम्हारे लिए एक मुरझाया गुलाब
रखा था, प्रिय मित्र !
किन्तु  मैं तुम्हें नहीं भूलता। तो क्या तुम फीके पड़ गए हो ?
क्या सुगन्ध सांस लेकर छोड़ दी गई है ?
क्या रँग  और ओज निष्प्रभ हो गये हैं ?
नहीं, जब तक स्मृतियों  का सूक्ष्म खेल चलता 
रहता है, अतीत पहले की तरह ही स्पष्ट बना रहता है,
क्योंकि कल रात ही मैं जाग गया था और
उस छायाभासी वलय में तुमको देखा था,
तुम्हारी मुस्कान, आँखें,  मुख शान्त, मौन , पहले — जैसे ही प्यारे थे,
इसलिए कुछ समय वह माला भी मेरी आँखों की
पहुँच में रहने दो,
वे मेरे लिए अब भी मरी नहीं है, न वह अब भी सूखी है ।

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : दिनेश्वर प्रसाद

लीजिए, अब यही कविता मूल अँग्रेज़ी में पढ़िए
                Walt Whitman
             The Pallid Wreath

Somehow I cannot let it go yet, funeral though it is,
Let it remain back there on its nail suspended,
With pink, blue, yellow, all blanch'd, and the white now gray
and ashy,
One wither'd rose put years ago for thee, dear friend,
But I do not forget thee. Hast thou then faded?
Is the odor exhaled? Are the colors, vitalities, dead?
No, while memories subtly play—the past vivid as ever;
For but last night I woke, and in that spectral ring saw
thee,
Thy smile, eyes, face, calm, silent, loving as ever:
So let the wreath hang still awhile within my eye-reach,
It is not yet dead to me, nor even pallid.

CAMDEN, January 4, 1891.