Last modified on 18 नवम्बर 2011, at 17:58

फूला है / कैलाश गौतम

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:58, 18 नवम्बर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैलाश गौतम |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <poem> फूला...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

फूला है गलियारे का
कचनार पिया
तुम हो जैसे
सात समन्दर पार पिया |

हरे- भरे रंगों का मौसम
भूल गये
खुले -खुले अंगों का मौसम
भूल गये
भूल गये क्या
फागुन के दिन चार पिया |

जलते जंगल कि हिरनी
प्यास हमारी
ओझल झरने की कलकल
याद तुम्हारी
कहाँ लगी है आग
कहाँ है धार पिया |

दुनियां
भूली है अबीर में
रोली में
हरे पेड़ की
खैर नहीं है
होली में
सहन नहीं होती
शब्दों की मार पिया |