भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"फूलों का गीत / श्रीनाथ सिंह" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKRachna |रचनाकार=श्रीनाथ सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBaalKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=श्रीनाथ सिंह
 
|रचनाकार=श्रीनाथ सिंह
पंक्ति 8: पंक्ति 9:
 
फूल जगत के हैं हम प्यारे,
 
फूल जगत के हैं हम प्यारे,
 
रूप रँग में न्यारे न्यारे।
 
रूप रँग में न्यारे न्यारे।
 +
 
काम हमारा है मुस्काना,
 
काम हमारा है मुस्काना,
 
सुन्दर पास पड़ोस बनाना।
 
सुन्दर पास पड़ोस बनाना।
 +
 
ओस सुबह की नहला देती,
 
ओस सुबह की नहला देती,
 
तितली आन बलैया लेती।
 
तितली आन बलैया लेती।
 +
 
भौंरे गान सुना जाते हैं,
 
भौंरे गान सुना जाते हैं,
 
जहाँ हमें फूला पाते हैं।
 
जहाँ हमें फूला पाते हैं।
 +
 
पाठ प्रेम का पढ़ते आला,
 
पाठ प्रेम का पढ़ते आला,
 
एक बनाते हम मिल माला।
 
एक बनाते हम मिल माला।
 +
 
सदा मेल से शोभा पाते,  
 
सदा मेल से शोभा पाते,  
 
भेद भाव हम दूर भगाते।
 
भेद भाव हम दूर भगाते।
 +
 
चढ़े सिरों पर आदर पावें,
 
चढ़े सिरों पर आदर पावें,
 
या सड़कों पर कुचले जावें।
 
या सड़कों पर कुचले जावें।
 +
 
कभी न मुख पर दुःख लावेंगे,
 
कभी न मुख पर दुःख लावेंगे,
 
हर हालत में मुस्कावेंगे।
 
हर हालत में मुस्कावेंगे।
 +
 
खिलें बाग में या घूरे पर,
 
खिलें बाग में या घूरे पर,
 
हम लेते हैं प्रण पूरे कर।
 
हम लेते हैं प्रण पूरे कर।
 +
 
यानि हँसते औ' मुस्काते,
 
यानि हँसते औ' मुस्काते,
 
सुन्दर पास पड़ोस बनाते।
 
सुन्दर पास पड़ोस बनाते।
 
</poem>
 
</poem>

17:29, 11 मई 2015 के समय का अवतरण

फूल जगत के हैं हम प्यारे,
रूप रँग में न्यारे न्यारे।

काम हमारा है मुस्काना,
सुन्दर पास पड़ोस बनाना।

ओस सुबह की नहला देती,
तितली आन बलैया लेती।

भौंरे गान सुना जाते हैं,
जहाँ हमें फूला पाते हैं।

पाठ प्रेम का पढ़ते आला,
एक बनाते हम मिल माला।

सदा मेल से शोभा पाते,
भेद भाव हम दूर भगाते।

चढ़े सिरों पर आदर पावें,
या सड़कों पर कुचले जावें।

कभी न मुख पर दुःख लावेंगे,
हर हालत में मुस्कावेंगे।

खिलें बाग में या घूरे पर,
हम लेते हैं प्रण पूरे कर।

यानि हँसते औ' मुस्काते,
सुन्दर पास पड़ोस बनाते।