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फूलो की बेकरार निगाहों के आसपास / शेरजंग गर्ग

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फूलों की बेक़रार निगाहों के आसपास।
क्या वक़्त है कि दीखते आँसू बड़े उदास?

सारी उमर तो ख़्वाब सजाने में काट दी,
क्यों आ रहा है तल्ख़ हक़ीक़त में अब मिठास?

सोचा बहुत-बहुत मगर पहुँचे यहीं पे हम,
सारा जहान आम है, तनहाइयाँ हैं ख़ास।

दिल टूटने लगा है, उसी बुत की याद में,
जिसके लिए न भूख लगी है कभी, न प्यास।

घूमा किए नज़र उन्हीं कूचों में रोज़-रोज़
जिनमें मेरे खु़दाओं ने कुछ दिन किया था वास।

कुछ भी भला नहीं, यहाँ कुछ भी बुरा नहीं,
अपना ही दर्द आ नहीं पाया हमें तो रास।