फूल, ख़ुशबू, चाँद, जुगनू और सितारे आ गए
खुद-ब-खुद ग़ज़लों में अफ़साने तुम्हारे आ गए
हम सिखाने पर तुले थे रूह को आदाब ए दिल
पर उसे तो ज़िस्म वाले सब इशारे आ गए
आँसुओं से सींची है, शायद ज़मीं ने फ़स्ल ये
क्या तअज्जुब पेड़ पर ये फल जो खारे आ गए
हमको भी अपनी मुहब्बत पर हुआ तब ही यकीं
हाथ में पत्थर लिए जब लोग सारे आ गए
उम्र भर फल-फूल ले, जो छाँव में पलते रहे
पेड़ बूढ़ा हो गया, वो लेके आरे आ गए
मैंने मन की बात ’श्रद्धा’ ज्यों की त्यों रक्खी मगर
लफ्ज़ में जाने कहां से ये शरारे आ गए