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"फूल, चाँद और रात / इला कुमार" के अवतरणों में अंतर
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22:49, 1 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण
अब कोई नहीं लिखता
कविता फूलों की सुगन्ध भरी
रात नहाई हो निमिष भर भी
चांदनी में
फूलों के संग
पर कोई नहीं कहता
उस निर्विद्ध निमिष की बात
जो अब भी टिका है
पावस की चम्पई भोर के किनारे
चांदनी की बात
झरते हुए हारसिंगार तले
बैठकर रचे गए विश्वरूप
श्रंगार की बात
अभी अभी साथ की सड़क पर गुजरा है
मां के साथ
मृग के छौने सरीखा
रह रहकर किलकता हुआ बालक
चलता है वह नन्हे पग भरता
बीच बीच में फुदकना
उसकी प्रकृति है
कोई नहीं करता प्रकृति की बात
फूल चांद और रात की बात।