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फूल, दरिया और बहुत कुछ / सतीश छींपा

बहुत कुछ है तुझमें
जैसे एक फूल कोई
या कोई दरिया हो जैसे
दरिया
बहा ले जाता है फूल को
फूल
रमता संग दरिया के निकल जाता है दूर
बहुत दूर
विलुप्त होता
अनन्त-अनन्त में
आओ-
मैं तुम्हारे ‘दरिया‘
‘फूल‘ और इस ‘बहुत कुछ‘ को प्यार कर लूं
फिर न जाने
यह जीवन
तुम्हारे भीतर बहकर
कहाँ चला जाए।