Last modified on 19 अक्टूबर 2011, at 12:22

फूल की स्मरण-प्रतिमा / अज्ञेय

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:22, 19 अक्टूबर 2011 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय }} {{KKCatKavita}} <poem> यह देने का अहंकार...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

यह देने का अहंकार
छोड़ो ।
कहीं है प्यार की पहचान
तो उसे यों कहो :
'मधुर ये देखो
फूल । इसे तोड़ो;
घुमा-फिरा कर देखो,
फिर हाथ से गिर जाने दो :
हवा पर तिर जाने दो-
(हुआ करे सुनहली) धूल ।'

फूल की स्मरण-प्रतिमा ही बचती है ।
तुम नहीं, न तुम्हारा दान ।