भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फूल गाछ / जय गोस्वामी / रामशंकर द्विवेदी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:46, 5 सितम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जय गोस्वामी |अनुवादक=रामशंकर द्व...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह आएगी,
आएगी ही आज वह
यही बात कह रहा है गन्धराज
यही बात खिली हुई है स्थल पद्म गाछ में

ढलती हुई धूप से
आँखें हटाते ही
देखता हूँ,
यह क्या ! धूप तो नहीं है

स्वयं ही फूलगाछ होकर
बरामदे के पास
हंसते हुए वह खड़ी हुई है !

मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी