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फूल जब फूलते हैं वृक्षो में / प्रयाग शुक्ल

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फूल जब फूलते हैं वृक्षों में
आँखें चुपचाप उधर जैसे आभार में
ऊपर उठ जाती हैं।
बादल जब छाते हैं, थोड़ा गहराते हैं
हम विनीत मस्तक यह अपना
उठाते हैं।

दूर्वादल पैरों को जब-जब सहलाता है
कितना संकोच-भार
मन में खिंच आता है-
आभारी अपने में खोए कुछ
देखते, वह क्या है भीतर तक
मन में भर आता है।

वैसे तो सीमा नहीं दृष्टि की
लेकिन जो ऊपर है
और जो नीचे है-
यहाँ ऎन सामने
हम पर कुछ बरसाता-सरसाता,
उससे एक अलग ही
नाता है।