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फूल जीवन को / महेश उपाध्याय

जागरण यदि दे न पाओ
               एक निर्झर का
नींद पर्वत की न देना —
               फूल जीवन को

रूप मेरा साल का पहला दिवस
गन्ध मेरी बाँझ धरती की उमस
धूप करवट-सी बदलती है जिसे पीकर
धमनियों में वह नशीला रस

अपशकुन समझो न यायावर मुझे
ढाल लूँगा मैं —
समय अनुकूल जीवन को
नींद पर्वत को न देना —
               फूल जीवन को