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फूल तोरे गैली गौरी हे, ओहि फुलबारी / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

फूल तोरे गैली गौरी हे, ओहि फुलबारी।
बसहा चढ़ल सिव हे, करै पुछारी॥1॥
केकरअ<ref>किसकी</ref> बारी<ref>थोडी अवस्था की, जो सयानी न हो; बाला</ref> हे, केकरी<ref>किसकी</ref> दुलारी।
केकरी हुकुमे गौरी हे, ऐली<ref>आई</ref> फुलबारी॥2॥
बाबा केरा बारी सिव हे भैया के दुलारी।
हुनुके<ref>उन्हीं के</ref> हुकुम सिव हे, ऐलऊँ फुलबारी॥3॥
रिसे<ref>क्रोध से</ref> रिसैली<ref>क्रोधित हुई</ref> गौरी, गेली रिसिआई।
तोरल फूल गौरी हे, देल छिड़िआई॥4॥
कानल<ref>रोते हुए</ref> खिजल<ref>दुःखी और क्रुद्ध होना; खिजलाना</ref> गोरी, गेली अम्माँ पास।
किए रूसल गौरी हे, किए देलन गारी॥5॥
हम न कहब अम्माँ हे, कहत लजाई।
पूछू जाय सखि सब, कहत बुझाई॥6॥
सन सन<ref>सन के समान सफेद</ref> केस अम्माँ हे, मुख नहिं दाँत।
बसहा चढ़ल आबै, ओहे पढ़लन गारी॥7॥
आबे दहो जात पूत, कहब बुझाई।
कौने अपराध सिव, गौरी देल गारी॥8॥

शब्दार्थ
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