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फूल हैं अग्नि के खिले हर सू / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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26 फ़रवरी
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<poem>
फूल हैं अग्नि के खिले हर सू।
रौशनी की महक बहे हर सू।
आसमाँ सी ज़मीं दिखे हर सू।
लौट कर मायके से वो
आईं
आये
,
दीप ख़ुशियों के जल उठे हर सू।
वो दबे पाँव आज
आए
आये
हैं,
एक आहट सी दिल सुने हर सू।
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