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बंजर होगे ना / ध्रुव कुमार वर्मा - अवतरण इतिहास
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|रचनाकार=ध्रुव कुमार वर्मा <br />
|अनुवादक=<br />
|संग्रह=<br />
}}<br />
{{KKCatKavita}}<br />
<poem><br />
जेकर महानदी महतारी<br />
राजिव लोचन बाप<br />
छत्तीसगढ़ के ए धरती ल<br />
कइसे लगगे श्राप।<br />
बंजर होगे ना<br />
सोना असन चमकत धरती<br />
बंजर होगे ना।<br />
<br />
<br />
बरसिस नहीं बादर बैरी<br />
दुच्छा मुख ल टारिस<br />
लालच मं भटकाके एसो<br />
घुमा-घुमा के मारिस<br />
सावन भादो अइसे तपिस<br />
जइसे भूंजय होरा<br />
मोर धान के कटोरा<br />
बंजर होगे ना<br />
चंदन असन महकत धरती<br />
बंजर होगे ना॥1॥<br />
<br />
खेती बारी नींदेन कोड़ेन<br />
जांगर ल खपाएन<br />
दूध के संग मं दुहला घलो<br />
एसो के साल गवांएन<br />
घर के बिजहा खेत म डारेन<br />
पेट ल पारेन फोरा<br />
मोर महानदी के कोरा<br />
बंजर होगे ना<br />
फूलत फरत हरियर धरती<br />
बंजर होगे नां।2॥<br />
<br />
ओढ़ना, कपड़ा, नून तेल ला<br />
कामा करके लेबो।<br />
खातू-माटी के करजा ल<br />
कहां ल लाके देबो।<br />
घुरवा असन बाढ़े बेटी के<br />
कइसे करबो तोरा<br />
मोर धान के कटोरा<br />
बंजर होगे ना<br />
सोना असन चमकत धरती<br />
बंजर होगे ना॥3॥<br />
</poem></div>
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