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बइण का आँगणा म पिपळई रे वीरा चूनर लावजे / निमाड़ी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बइण का आँगणा म पिपळई रे वीरा चूनर लावजे।।
लाव तो सब सारू लावजे रे वीरा,
नई तो रहेजे अपणा देश।
माड़ी जाया, चूनर लावजे।।
संपत थोड़ी, विपत घणी हो बइण,
कसी पत आऊँ थारा द्वार।।
माड़ी जाई, कसी पत आऊँ थारा द्वार।।
भावज रो कंकण गयणा मेलजे रे वीरा,
चूनर लावजे।
असी पत आवजे म्हारा द्वार,
माड़ी जाया, चूनर लावजे।।