भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बइण जिन घर आनन्द बधाओ / निमाड़ी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बइण जिन घर आनन्द बधाओ।।
हऊँ तो अचरज मन माही जाणती,
हऊँ तो बाग लगाऊँ दुई चार,
ओ तो आई मालण, फुलड़ा लई गई,
म्हारो बाग परायो होय,
हऊँ तो अम्बा लगाऊँ दस पाँच,
ओ तो आई कोयळ कैरी लई गई,
म्हारो अम्बो परायो होय,
हऊँ तो पुत्र परणाऊँ दुई चार,
ओ तो आई थी बहुवर,
पुत्र लई गई, म्हारो पूत पराया होय,
हऊँ तो कन्या परणाऊँ दुई चार,
ओ तो आया साजन, कन्या लई गया,
म्हारी कन्या पराई होय,
एक सास नणद सी सरवर रहेजे,
जीभ का बल जीतजे।।
एक देराणी जेठाणी सी सरवर रहेजे,
काम का बल जीतजे।।
एक धणी सपूता सी सरवर रहेजे,
कूक का बल जीतते।।