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बगरोॅ / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

चलोॅ बताबोॅ हमरा बाबा,
को रंग बगरो होय छै बाबा।

कोबोॅ भर के छटपटिया पंक्षी,
आय देखावोॅ हमरा बाबा।

मांटी घर नरूआ के छौनी में,
केनां रहै छै बगरो बाबा।

पोता जिदोॅ पर अड़लोॅ छै,
बगरोॅ देखी ही मानभौं बाबा।

घोॅर, ओसरा, कोन्टा सगरोॅ,
देखी थकलौं हम्में बाबा।

तोरोॅ चुप्पी से हम्में की बूझौं,
खाली किस्सै में छै बगरोॅ बाबा।

चुप करोॅ तोंय बगरोॅ किस्सा,
छाती होॅर चलै छै बाबा।

टी. वी. मोबाइल के चलती में,
सब ठो बगरो मरलै बाबा।