Last modified on 5 अक्टूबर 2017, at 19:15

बचाव की कला / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:15, 5 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिरुद्ध प्रसाद विमल |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

भेड़िया गुर्राता है
आदमी की शक्ल में
और तुम
मेमने की तरह मिमियाते हो ;
तुम्हारा यही भय
तुम्हें भेड़िये का भोजन बनाता है
अगर तुम
भोजन बनना नहीं चाहते
तो तुम्हें
गुर्राने की कला सीखनी होगी,
गुर्राने की ही नहीं
झपटने की भी।