भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बचा है कुछ हरा / राजेश कुमार व्यास

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:00, 7 जुलाई 2010 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पेड़ों में
बचे हैं
अभी भी
हरे पत्ते;
नम आंखों में
बचे हैं
अभी भीआ
बहुत-से सपने;
धूप में
बची है
अभी भी
थोड़ी-सी छांव;
रीतते मन में
बचा है
अभी भी
बीता अतीत;
उदासी में
बची है
अभी भी
थोड़ी-सी मुस्कान;
बाहर नहीं तो अंदर
बचा है
अभी भी
कुछ हरा।
नहीं,
अभी तो
कुछ भी
नहीं झरा।