Last modified on 30 मार्च 2009, at 19:03

बचो / प्रभात त्रिपाठी

विषधर चौक के
इस विकराल विस्तार को समझो
और बचो इस शहर से

यहाँ सारी सड़कें, अपने समूचे कोहराम
और चमचमाते ताम-झाम के साथ
दनदनाती घुस रही हैं तुम्हारे घरों में

तुम्हारे एकांत की चिंदियाँ बिखेरतीं
इन सड़कों की असलियत
सिर्फ़ ताक़त है

सिर्फ़ ताक़तवरों को एक दूसरे के निकट लातीं
इन सड़कों पर चलकर
कोई कभी नहीं पहुँचता अपने घर

अगर अपने घर जाना है
तो इन सड़कों से बचो