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बच्चों के बीच / गिरिराज शरण अग्रवाल

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कितना अच्छा लगता है
सब कुछ भूलकर
बच्चों के बीच बैठना;
उन्हें देखना जी भरके,
उनसे बातें करना
उन्हें पुचकारना
और उनकी जीत में ही
अपनी जीत मानकर
सब कुछ हार जाना ।

कितना अच्छा लगता है
बच्चों की सहज मुस्कान को
सहेजना,
उनके कोमल अंगों का
स्पर्श करना फूलों की तरह धीरे से
और फिर देर तक
उनकी आँखों में झाँकना
सचमुच, कितना अच्छा लगता है !

कितना अच्छा लगता है
बच्चों को बेबात
बड़ी-बड़ी बातें करते देखना;
या फिर बुद्धू-सा बनकर
उनकी बातों में रस लेना
उनकी ज़िद पर ख़ुशी-ख़ुशी
अपनी ज़िद छोड़ना
और उनके सपनों से
अपने सपने जोड़ना।
कितना अच्छा लगता है !

कितना अच्छा लगता है
संवादहीनता की स्थिति में भी
बच्चों के साथ संवाद बुनना,
और उनकी तोतली-सी ज़ुबान में
कही-अनकही बातों को बार-बार
बडे़ ध्यान से सुनना;
उनके आकाश को बरबस
अपनी भुजाओं में भरना
और उनके सागर को
नापने के प्रयास में
ख़ुद ही सागर बन जाना।
कितना अच्छा लगता है !

कितना अच्छा लगता है-
बच्चों के बीच बैठकर,
बिलकुल बच्चा बन जाना
और भूल जाना सारे दुख-दर्द
सचमुच, कितना अच्छा लगता है !