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बड़ा शोर है गीत कैसे सुनाऊँ
मगर ये मुनासिब नहीं लौट जाऊँ
जहाँ आदमी, आदमी का हो दुश्मन
वहाँ प्यार का पाठ किसको पढ़ाऊँ
लड़ाई यहाँ सिर्फ़ वर्चस्व की है
गुनहगार किस क़ौम को मैं बताऊँ
 
बतायेगा कोई अमन के लिए क्या
उठाऊँ मैं ख़ंजर कि गरदन झुकाऊँ
 
हुकूमत की आँखों पे पट्टी बँधी है
उसे तो लगी है कि कुर्सी बचाऊँ
 
ख़ुदा तूने कैसी ये दुनिया बनाई
कि जीना भी मुश्किल है मर भी न पाऊँ
 
यही रास्ता मुझको आसान लगता
कि दुश्मन को फिर से गले से लगाऊँ
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