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बड़ी उम्र के लोग / नरेश अग्रवाल

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अपने अन्तिम दिनों में
कितने प्रिय हो गए थे वे मेरे
और बाद में भी हमेशा के लिए
और उनके लिखे कोई शब्द नहीं है मेरे पास
न ही कोई पत्र या संदेश
न ही याद कभी भी
उठाया था उन्होंने मुझ पर हाथ
बर्दास्त किया था मेरी हर जिद को
और कितने वषो॔ बाद महसूस किया मैंने,
भीगा हुआ हूँ मैं उनके आँसूओं से
शायद इसीलिए लगते होंगे मुझे
बड़ी उम्र के हर आदमी अच्छे
और सचमुच चाहता था मैं छोटा रहना
हर किसी बड़े के सामने
और होता है कितना आनन्द
बने रहना लधुता में
यह बताना उतना ही मुश्किल है ।