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बड़े हम जैसे होते हैं / कुलवंत सिंह

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बड़े हम जैसे होते हैं तो रिश्ता हर जकड़ता है ।
यहां बनकर भी अपना क्यूँ भला कोई बिछड़ता है।।

सिमट कर आ गये हैं सब सितारे मेरी झोली में,
कहा मुश्किल हुआ संग चांद अब वह तो अकड़ता है।

छुपा कान्हा यहीं मै देखती यमुना किनारे पर,
कहीं चुपके से आकर, हाथ मेरा अब पकड़ता है।

घटा छायी है सावन की पिया तुम अब तो आ जाओ,
हुआ मुश्किल है रहना, अब बदन सारा जकड़ता है।

जिसे सौंपा था मैने हुश्न अपना मान कर सब कुछ,
वही दिन रात देखो हाय अब मुझसे झगड़ता है।

बने हैं पत्थरों के शहर जब से काट कर जंगल,
हकीकत देख लो इंसान से इंसान डरता है।