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बढ़नी से अलगावल गइलीं भरल जवानी बबुआ जी / रामरक्षा मिश्र विमल
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बढ़नी से अलगावल गइलीं भरल जवानी बबुआ जी
कुक्कुर अस पुचकारल गइलीं इहे कहानी बबुआ जी
रतजग्गा होखे रउरा से करत निहोरा खाए के
अजुओ अंतर आइल ना ओसहीं मनमानी बबुआ जी
मजबूती आ अधिकारन के केहू कतनो बात करे
अजुओ मेहरारू का नाँवे लिखल चुहानी बबुआ जी
ममता के धागा से हरदम जोरल आपन आदत बा
टूटेला परिवार त कारन हमही बानी बबुआ जी
हमरो मन होला पढ़ितीं लिखितीं जनितीं दुनिया का हऽ
बाकिर आँतर खोजल जाला सोना चानी बबुआ जी
छोटन खातिर प्यार अउर सम्मान बड़न के ओठन पर
नख शिख दरशन कइके लोग अघाले मानीं बबुआ जी