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बढ़े चलो / कल्पना मिश्रा

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जीतने की अगर लगन हो,
मन में लगी अगर अगन हो
प्रयास अगर कर रहे हो
भाव मन में धर रहे हो
दृष्टि एक लक्ष्य पर हो,
शक्ति, ऊर्जा अक्षय हो
ह्रदय अगर निर्भय हो,
तो तुम जय हो, अभय हो,
तुम ही भाग्य के निर्माता हो
अपने भावी के तुम्हीं विधाता हो ।
तुम ज्ञानी हो तुम ज्ञाता हो ।
मांगोगे फिर नही तुम
फिर तुम ही दाता हो ।।
आगे बढ़ो बढ़े चलो
लिखो सुनो पढ़े चलो ।
रूको नहीं थमो नहीं
अड़े रहो खड़े रहो।
षिष फिर झुकाएगा हिमालय भी
चढ़े चलो बढ़े चलो ।।