भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बताशे लाए दादा! / रमेश तैलंग

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:16, 16 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |अनुवादक= |संग्रह=मेरे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

खीलें लाईं भाभीजी,
बताशे लाए दादा।
बमों को, पटाखों को है
कर दिया टाटा!

अब की दिवाली पर न
शोर हम करेंगे।
फट्टा-फटा-फट्ट से न
बोर हम करेंगे।
फुलझड़ी, अनारों का ही
लेंगे मज़ा ज्यादा।

छोटी-छोटी खुशियाँ ये
कल बड़ी होंगी,
एक लड़ी आज, कल
सत-लड़ी होंगी,
झूठ-मूठ का नहीं है
अपना ये वादा।