भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बता दे तुझको अपनी ग़ज़ल में मैं क्या लिखूँ / शर्मिष्ठा पाण्डेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बता दे तुझको अपनी ग़ज़ल में मैं क्या लिखूँ
लिखूँ दुआ,गुनाह लिखूँ या के मेहर मैं लिखूँ

कभी न तुझसे हुई ज़ज्बों की तौकीर शपा
लिखूँ बेहिस के बेनियाज़,दर बदर मैं लिखूँ

तेरी तबियत के लड़कपन को खिलौना क्या दूँ
तोड़ने वाला दिल,क्या तुझको फ़ितनागर मैं लिखूँ

तुझे था जअम कितना अपनी अकलमंदी पर
तिश्नगी तक बुझा सके न समंदर वो लिखूँ

तू तो दीगर था,तूने तौबा भी करी थी बहुत
हिसाब ए सख्ती, मुब्तिला क्या सितमगर मैं लिखूँ

हरकतें तेरी हमने कीं नज़रंदाज़ कुछ यूँ
कमतरे गोताखोरी में गया कौसर मैं लिखूँ

जो मैं खामोश हूँ न समझ बुजदिली मेरी
जिल्लत ए नफ्स से ए दोस्त बेखबर मैं लिखूँ

जुबां को रोका है शिकवों से, नम तस्सवुर से
धार ए अलफ़ाज़ का का माहिर कोई हुनर मैं लिखूँ