भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बदन पर नई फ़स्ल आने लगी / आदिल मंसूरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आदिल मंसूरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
पंक्ति 5: पंक्ति 5:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
{{KKCatGhazal}}
 
 
{{KKCatGhazal}}
 
{{KKCatGhazal}}
 
<poem>
 
<poem>

07:34, 15 मई 2014 के समय का अवतरण

बदन पर नई फ़स्ल आने लगी
हवा दिल में ख़्वाहिश जगाने लगी

कोई ख़ुदकुशी की तरफ़ चल दिया
उदासी की मेहनत ठिकाने लगी

जो चुपचाप रहती थी दीवार में
वो तस्वीर बातें बनाने लगी

ख़यालों के तरीक खंडरात में
ख़मोशी ग़ज़ल गुनगुनाने लगी

ज़रा देर बैठे थे तन्हाई में
तिरी याद आँखें दुखाने लगी