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बदबू / शरद कोकास

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इसे सहज स्वभाव कहें या अज्ञान
बदबू की ज़िम्मेदारी हवाओं पर डालकर हम मुक्त
नाक अपनी जगह सही-सलामत
अपनी ख़ुशख़याली में महफ़ूज वह जगह
उठ रही है जहाँ से बदबू जमाने भर की

चलें विषय के बूचड़खाने में
सभ्यता का रूमाल नाक पर रख लें
जुगुप्सा को कविता का स्थायी भाव मान लें
अतीत को याद करें उपलब्ध हवाओं में
जिनमें शामिल बदबू महसूस की थी हमने

कभी किसी सड़ी-गली लाश से दूर चंद कदम
किसी गंदे नाले पर बना पुल पार करते हुए
चित्र की जगह कूड़े का ढेर रू-ब-रू देखकर
रेल के महानगर में प्रवेश करते हुए

नाक पर जीभ की विजय के चलते
मटन-मछली बाजार में
किसी सार्वजनिक शौचालय के आसपास
अपने घर में मरा चूहा ढूँढते हुए

या उत्कट प्रेम के मशविरे पर
पायरिया से ग्रसित दाँतों भरा
प्रेमिका का मुँह चूमते हुए

क्षमा करें प्रसंगों के बखान में निहित उद्देश्य
सोई हुई खराब अनुभूतियाँ जगाना नहीं है
इसकी व्यंजना में शामिल है समय सापेक्ष जीवन
बदबू के स्थूल अर्थ से परे

पूजाघर की खुशबुओं के बीच उपस्थित है जो
जिसमें अगरबत्ती फूल माला और इत्र बनाने वाले
मज़दूरों के पसीने में महकती इच्छाएँ
हमारी जीभ के सुख के लिए
जानवरों पर छुरी चलाते कसाई की भूख
हमारे दैहिक सौंदर्य के लिए
मरे जानवरों के जिस्म से खाल उतारते

भाइयों की जिजीविषा
चलिये कवि के यह सब रूपक
दिल पर मत लीजिये
बदबू भरी व्यवस्था, बदबू भरी राजनीति जैसे
साहित्यिक शब्दों की जुगाली कीजिये

परफ्यूम लगा रूमाल नाक पर रखिये
और यहीं कविता पढ़ना बंद कर दीजिये
फिर सोचिये ऐसे लोगों के बारे में
जिनके हर कृत्य में किसी साजिश की बू है
जो किसी सोच के तहत कह रहे हैं
कि ज्यादा बदबू वाली जगह से
कम बदबू वाली जगह पर जाने में
बदबू महसूस ही नहीं होती

ढूँढिए ऐसे लोगों को जो कह रहे हैं
बदबू सहन करते रहो
धीरे-धीरे इसकी आदत पड़ जाएगी
पहचानिये ऐसे लोगों को जिनका कहना है
अब बदबू कहाँ अब तो खुशबू ही खुशबू है
सो खुश रहो और खुशबू महसूस करो

यह वे लोग हैं जिनके निजी शब्दकोश में
बदबू जैसा कोई शब्द नहीं है
हमारे जीवन से रही सही खुशबुएँ चुराकर जो
बदलना चाहते हैं सारी दुनिया को
एक बदबूदार दुनिया में।