Last modified on 5 जुलाई 2010, at 15:58

बदलती संज्ञा के देखते / सांवर दइया

रोज ही
जल-जला जाती हैं लडकियां
बाहर की दुनिया
रहती है जस-की-तस
क्रिया नही
संज्ञा भर बदलती है बस

जलजला आता नहीं कहीं कोई
जल-जला आती है चुपचाप
जल-जला आना है जिसे एक-न-एक दिन
यहां नहीं तो वहां सही
वहां नहीं तो कहीं और सही

दुनिया को इसी तरह चलते रहना है
लडकियों को इसी तरह जलते रहना है
एक ही क्रिया के साथ
बदलती संज्ञा को देखते रहना है !