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बदलाव / कविता गौड़

लाना चाहती हूं मैं बदलाव
गंदी राजनीति में
सड़े गले रीति-रिवाजों वें
संकीर्ण विचारों में
टूटते परिवारों में
लोगों की नैतिकता में
नौनिहालों की सोच में
किसानो के हल में
सेना के बल में
विदेश की नकल में
युवतियों की पोषाक में
युवकों के आचार में
व्याप्त भ्रश्टाचार में
वैष्विक संबंधों में
पर मैं अकेली
खदे दी जाति हूँ
हर देश हर शहर
गली कूचों से
फिर भी लगी हूँ
संघर्श में बदलाव के